सार्थक है भटकाव
सार्थक है भटकाव
कि दिशा देता है।
टूटन का इतिहास
बन चंदन महकता है।
सृजन-ज्वार
कल्पना की नाव को
कहाँ से कहाँ
ले जा पटकता है
घनघोर घुमड़न के बीच
किसी शब्द-ऋषि का मन
डूब, डोलता है।
आकाशदीप-सी चमकती आँखों में
झिलमिल स्वप्न-शिशु का
गुदगुदा जिस्म ढलता है।
सीपिया पलकों में पल
रचना का मोती
आँसू बन टपकता है।
यों बार-बार
कवि का निजत्व
समर्पित होता है।
टूटन का इतिहास
बन चंदन महकता है।
सार्थक है भटकाव
कि दिशा देता है।
१६ जनवरी २००६ |