चलती है हवा
चलती है हवा तो हो जाती है बरसात
पानी की बूँदों की तरह
पत्तियों पर पत्तियाँ झर रहीं हैं
चुपचाप!
थर-थर काँपती घाटी
बेसुध हो, झील में
नहा रही है
पानी से उठती धुंध ने पर
ढक दी है उसकी लाज!
चलती है हवा तो सिहर उठता है
सिल्क के रंगीन दुपट्टे की तरह
नदी का जल!
आसमान पर छाए हैं
उचक्के चोर बादल
नदी में उतर
अपने सफेद झोलों में
जल्दी-जल्दी भर रहे हैं
बेशुमार रंग!
बसंती फूलों पर
मरने वालों का कौन समझाए,
पतझरी पत्तियों की नश्वरता में
छिपी है कैसी अमरता! |