अनुभूति में
प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण की
रचनाएँ-
नयी कविताओं में-
अपने को मिटाना सीखो
एक दिन
ये
मेरे कामकाजी शब्द
कविताओं में-
उभरूँगा फिर
एक धुन की तलाश
गुज़रे कल के बच्चे
घर लौट रहे बच्चे
चलती है हवा
जापान में पतझर
झरती पत्तियों ने
दिन दिन और दिन
ध्वन्यालेख तन्मयता के
निराला को याद करते हुए
मुक्ति
मौसम
लक्ष्य संधान
वसंत से वसंत
सार्थक है भटकाव
सुनो सुनो
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जापान में पतझर
निक्को के पर्वत-शिखरों पर
ठहर गई है अक्तूबर की धूप
घाटी की हरियाली पर
बैठी हैं अनगिनत तितलियाँ
उड़ना भूल!
तैल-रंगों सी छायाएँ उनकी
झील में पड़ी हैं छिटकी
आतुर आकाश ने
लेने को जिन्हें समेट
जल की सतह पर फैलाए हैं
बादलों के काग़ज़ सफेद
और फिर
पेड़ों की छाया में
बिछा दिए हैं सूखने के लिए
निक्को के पतझर ने आज
कराया एक नया अहसास
भूल है समझना
वसंत के पास ही है
रंगों का एकाधिकार
पतझर ने भी पाया है
प्रकृति-माँ से
रंगों का उत्तराधिकार! |