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पिरामिड की ममी
पिता को, पूर्वजों से मिला था
औरत को काबू में
रखने का अधिकार।
फिर भी बेटी को दिया
भरपूर दुलार,
खेलने को खुला आँगन।
फिर भी सीमा खींच दी
अग्नि-रेखा की
आदतन।
पति नम्र, उदार
सीमाओं की रेखाएँ मिटाकर
चारों ओर बाँध दी
प्यार की बाड़।
ऊँची दीवारों पर भी
निषेधों के टूटे शीशे
दिए डाल।
हितैषी हैं वह मेरे
ख़ुद डयोढ़ी पर हैं खड़े
कैसे सकती हूँ लाँघ?
बेटा जवान
पुरुषों की विरासत का,
होनहार हक़दार।
माँ का सम्मान
दे सकता है जान।
माँ कहीं चोट न खाए,
गिर न जाए
थाम कर खड़ा है
एक ही जगह पर
सीमाओं का पहरेदार,
वह चौकन्ना, तैनात।
मेरे तीन-तीन शुभचिंतक
मेरे तीन-तीन प्रतिरक्षक
उनकी तीन-तीन पीढ़ियाँ गुज़र गईं।
फिर भी मैं क्यूँ खड़ी
वहीं की वहीं रह गई
सुरक्षित
प्रतिरक्षित
पिरामिड की मम्मी सी।
१६ अप्रैल
२०१२
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