अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अनिल प्रभा कुमार की रचनाएँ—

नई रचनाएँ—
माँ- तीन कविताएँ

छंदमुक्त में—
अच्छा हुआ
आभार

उम्मीद
जवाब
दूरी

धन्यवाद
धूप
पिरामिड की ममी
प्रेम कविताएँ

बंद आँखें
माँ दर मा

विमान
साथ
सूर्यास्त

 

माँ दर माँ

उनकी जेबों में डालती हूँ
अपने अनुभव के सिक्के
रख लो, काम आएँगे।
ज़बरदस्ती
बाँधती हूँ
मूल्यों की पोटली।
कोने में रख देना
पड़ी रहेगी,
मेरी याद दिलायेगी।

अंध-विश्वासों की
यह धरोहर
चलो रख लेती हूँ,
मैं अपने पास।
पर यह तो रख लो
पुश्तैनी कम्पास।
पुरानी हैं सुईयाँ
फिर भी करती हैं काम,
भटकने पर राह दिखाएँगी।
खींचती हूँ लक्ष्मण-रेखा
बाँधती हूँ सीमा,
आकाश पर भी
पटरियाँ डाल,
संचालित करती हूँ
उनकी उड़ान।
फिर भी आशंका का सायरन
चुप नहीं होता,
गूँजता है लगातार।

विदा करती हूँ उन्हें
संस्कारों का तिलक,
आशीषों का छत्र,
वर्जनाओं का कवच दे।
मोह की ज़ंजीर
काटती हूँ, विवेक से।

लौटते वक्त,
आईने में
अपना अक्स देख
डर गई हूँ मैं
कब से
अपनी माँ
बन गई हूँ मैं ?

१६ अप्रैल २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter