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बदन पर सिंकती रोटियाँ
बुरका
भूख लत है

रौशनदान
शहर में चाँदनी
हाँफ रही है पूँजी

 

सलीब

दिशाओं के
अहंकार को ललकारतीं भुजाएँ
और चीखकर
बेदर्दी की इन्तहा को
चुनौती देतीं
हथेलियों में धसी कीलें

एक-एक बूँद टपकता लहू
जो सींचता है
उसी जमीन पर लगे
फूल के पौधों को
जहाँ सलीब पर खड़ा है सच
जब भी लगता है
कि हार रहा है मेरा सच
सलीब को देखता हूँ
लगता है कोई खड़ा है मेरे लिए
झूठ के खिलाफ

१ नवंबर २०१७

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