अनुभूति में
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आसमानों को रँगने का हक
एक मौत ही साम्यवादी है
गुंजाइशों का दूसरा नाम
बदन पर सिंकती रोटियाँ
बुरका
भूख लत है
रौशनदान
शहर में चाँदनी
हाँफ रही है पूँजी |
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बदन पर सिंकतीं रोटियाँ
गरम-गरम रोटियों के लिए
तुम्हारे भी पेट में
आग धधकती होगी
कितना अच्छा लगता है
जब माँ या पत्नी तुम्हारे लिए
सेंकती है गरमा-गरम रोटियाँ
लेकिन
एक गली है इस शहर में
जहाँ रोटियाँ तवे की मुहताज नहीं हैं
बल्कि बदन पर सेंकी जाती हैं
यहाँ बदन को तपाकर
इतनी गर्मी पैदा कर ली जाती है कि
उस पर रोटियाँ सेंकी जा सके
तुम जान भी नहीं पाते हो
कि तुम्हारी सहानुभूति के छींटे
कब छनछनाकर उड़ जाते हैं
इस लहकते शरीर से
यहाँ शरीर की रगड़न से पैदा हुई
चिंगारियों को अँगीठी में सहेज कर
क्रूर सर्द रातों को गुनगुना बनाया जाता है
इस गली तक चल कर आते हैं
शहर भर के घरों से रास्ते
और शायद यहीं पर खत्म हो जाते हैं
क्यूँकि इस गली से कोई रास्ता
किसी घर तक नहीं जाता
तुम बात करना अगर मुनासिब समझो
तो जरा बताओ कि क्या तुमने कभी
बदन पर सिंकती हुई रोटियों को देखा है यहाँ
शायद नहीं देखा होगा
क्यूँकि यहाँ से निकलते ही
जब तुम अपनी पीठ
इस गली की तरफ करते हो
नजरें चुराने में माहिर तुम्हारी आँखें
सिर्फ अपने घर के दरवाजे पर टिकी होती हैं
२२ जुलाई २०१३ |