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बदन पर सिंकतीं रोटियाँ

गरम-गरम रोटियों के लिए
तुम्हारे भी पेट में
आग धधकती होगी
कितना अच्छा लगता है
जब माँ या पत्नी तुम्हारे लिए
सेंकती है गरमा-गरम रोटियाँ
लेकिन
एक गली है इस शहर में
जहाँ रोटियाँ तवे की मुहताज नहीं हैं
बल्कि बदन पर सेंकी जाती हैं

यहाँ बदन को तपाकर
इतनी गर्मी पैदा कर ली जाती है कि
उस पर रोटियाँ सेंकी जा सके

तुम जान भी नहीं पाते हो
कि तुम्हारी सहानुभूति के छींटे
कब छनछनाकर उड़ जाते हैं
इस लहकते शरीर से

यहाँ शरीर की रगड़न से पैदा हुई
चिंगारियों को अँगीठी में सहेज कर
क्रूर सर्द रातों को गुनगुना बनाया जाता है

इस गली तक चल कर आते हैं
शहर भर के घरों से रास्ते
और शायद यहीं पर खत्म हो जाते हैं
क्यूँकि इस गली से कोई रास्ता
किसी घर तक नहीं जाता

तुम बात करना अगर मुनासिब समझो
तो जरा बताओ कि क्या तुमने कभी
बदन पर सिंकती हुई रोटियों को देखा है यहाँ
शायद नहीं देखा होगा
क्यूँकि यहाँ से निकलते ही
जब तुम अपनी पीठ
इस गली की तरफ करते हो
नजरें चुराने में माहिर तुम्हारी आँखें
सिर्फ अपने घर के दरवाजे पर टिकी होती हैं

२२ जुलाई २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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