अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुशील कुमार की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
कामरेड की मौत
चाँद की वसीयत
मन का कारोबार
विकल्प
सलीब

छंदमुक्त में-
अनगढ़ पत्थर
आसमानों को रँगने का हक
एक मौत ही साम्यवादी है
गुंजाइशों का दूसरा नाम
बदन पर सिंकती रोटियाँ
बुरका
भूख लत है

रौशनदान
शहर में चाँदनी
हाँफ रही है पूँजी

 

अनगढ़ पत्थर

सदियों से
हमें यह सिखाया गया है कि
पत्थर छेनी और हथौड़ी से तराशे जाते हैं
और हम देते चले आये हैं
पाषाण खण्डों को विभिन्न आकार

छेनी की धार और हथौड़ी की मार को
पत्थर पहचानते हैं और
जो तराशे जाने को नियति मानते हैं
पूज्यनीय या शोभनीय हो जाते हैं

विशाल पर्वतों और दुर्गम पठारों में
आज भी हैं विलक्षण शिलाखण्ड
जो तराशे नहीं गए
इसलिए पूजे या सजाये भी नहीं गए

पहाड़ों के स्वाभाविक सौन्दर्य का हिस्सा बनकर
वे चेतना के अंकुरण की बाट जोह रहे हैं

जब भी कभी जीवन संगीत
इन पहाड़ों पर बजेगा
सबसे पहले उठ खड़े होंगे
ये अनगढ़ पत्थर
आकार से मुक्त और चेतन

१ मई २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter