अनुभूति में
सुशील कुमार की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
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चाँद की वसीयत
मन का कारोबार
विकल्प
सलीब
छंदमुक्त में-
अनगढ़ पत्थर
आसमानों को रँगने का हक
एक मौत ही साम्यवादी है
गुंजाइशों का दूसरा नाम
बदन पर सिंकती रोटियाँ
बुरका
भूख लत है
रौशनदान
शहर में चाँदनी
हाँफ रही है पूँजी |
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रौशनदान
सोचता हूँ किसने बनाया होगा
सबसे पहले अपने घर में रौशनदान
दिन ढलते ही रौशनदान से
अन्धेरा भी दाखिल हो जाता है कमरे में
और मुझको लगता है कि
रौशनदान की मिलीभगत
रौशनियों से कम और अँधेरों से ज्यादा है
घर के अन्दर बना एक घर
जहाँ मुझसे ज्यादा समय
कबूतर अपनी मादा के साथ रहता है
जिनकी गुटरगूँ मुझे ही दखल अंदाज बताती हैं
मैं अक्सर दबे पाँव कमरे से बाहर आ जाता हूँ
नींद से ठीक पहले
जब आँखें और कमरे को बत्ती बंद होती है
मैं देख पाता हूँ
एक रौशनदान जड़ा है दूर क्षितिज पर
१ मई २०१६ |