अनुभूति में
सुशील कुमार की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कामरेड की मौत
चाँद की वसीयत
मन का कारोबार
विकल्प
सलीब
छंदमुक्त में-
अनगढ़ पत्थर
आसमानों को रँगने का हक
एक मौत ही साम्यवादी है
गुंजाइशों का दूसरा नाम
बदन पर सिंकती रोटियाँ
बुरका
भूख लत है
रौशनदान
शहर में चाँदनी
हाँफ रही है पूँजी |
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चाँद की वसीयत
चाँद ने अपनी रातों की बादशाहत का
विस्तार करना चाहा
उसने बनाई एक वसीयत
जिसमें
एक मटरगश्त को
आधी सल्तनत दे दी गई
जिसे रात भर जागने
और भटकने की लत हो
और
जो बुन सके
सौम्यता की इतनी बड़ी चादर
जिससे पूरी कायनात पर
जिल्द चढ़ाया जा सके
इस तरह
मेरे हिस्से में जमीन आई
और
उसके पास रहा आसमान
१ नवंबर २०१७ |