साथी सुख में बन
जाते सब साथी सुख में बन
जाते सब दुख में कौन ठहरता है।
मेरे आँगन का बादल भी जाने कहाँ विचरता है।
कैसे हो पहचान जगत में असली
नकली चेहरे की।
अगर पसीने की रोटी हो चेहरा खूब निखरता है।
फ़र्क नहीं पड़ता शासन को जब
किसान भूखे मरते।
शेयर के बढ़ने घटने से सत्ता-खेल बिगड़ता है।
इस हद से उस हद की बातें करते
जो आसानी से।
और मुसीबत के आते ही पहले वही मुकरता है।
बड़ी ख़बर बन चीख रही है बड़े
लोग की खाँसी भी।
बेबस के मरने पर चुप्पी कैसी यहाँ मुखरता है।
अनजाने लोगों में अक्सर कुछ
अपने मिल जाते हैं।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।
करते हैं शृंगार प्रभु का समय
से पहले तोड़ सुमन।
सड़कर बदबू फैलाये जो मुझको बहुत अखरता है।
१७ अगस्त २००९ |