बच्चे से बस्ता है
भारी बच्चे से बस्ता है
भारी।
ये भविष्य की है तैयारी
खोया बचपन, सहज हँसी भी
क्या बच्चे की है लाचारी
भाषा, पहले के आका की
पढ़ने की है मारामारी
भारत को इंडिया हैं कहते
हिन्दी लगती है बेचारी
टूटा-सा घर देख रहे हो
वह विद्यालय है सरकारी
ज्ञान, दान के बदले बेचे
शिक्षक लगता है व्यापारी
छीन रहा जो अधिकारों को
क्यों कहलाता है अधिकारी
मंदिर, मस्जिद और संसद में
भरा पड़ा है भ्रष्टाचारी
हुआ है विकसित देश हमारा
घर घर छायी है बेकारी
सुमन पढ़ा जनहित की बातें
बिलकुल मानो है अखबारी
१७ अगस्त २००९
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