अभिसार जिन्दगी है
संघर्ष न किया तो धिक्कार
जिन्दगी है
काँटों का सेज कहकर स्वीकार जिन्दगी है
मिलता सुकूँ हवा से जो तन पे हो
पसीना
भूखे की जैसे रोटी अभिसार जिन्दगी है
इन्सानियत की कीमत ईमान की भी
कीमत
हालात ऐसे लगते व्यापार जिन्दगी है
क्या माँगने से हिस्से का धूप
भी मिलेगा
हक छीनकर के पाना अधिकार जिन्दगी है
गुजरो जिधर से खुशबू बन के सुमन
की गुजरो
कोई भी कह सके ना लाचार जिन्दगी है।।
२६ अप्रैल २०१०
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