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अनुभूति में श्यामल सुमन की रचनाएँ-

मुक्तक में-
चेतना (चार मुक्तक)

दोहों में-
दोहों में व्यंग्य
नेता पुराण

हार जीत के बीच में

अंजुमन में-
अभिसार ज़िंदगी है
कभी जिन्दगी ने
जीने की ललक
बच्चे से बस्ता है भारी
बाँटी हो जिसने तीरगी
मुझको वर दे तू
मुस्कुरा के हाल कहता
मेरी यही इबादत है
मैं डूब सकूँ
रोकर मैंने हँसना सीखा
रोग समझकर
साथी सुख में बन जाते सब
हाल पूछा आपने

कविताओं में-
आत्मबोध
इंसानियत
एहसास
कसक
ज़िंदगी
द्वंद्व
दर्पण
फ़ितरत 
संवाद
सारांश
सिफ़र का सफ़र

  बाँटी हो जिसने तीरगी

बाँटी हो जिसने तीरगी उसकी है बन्दगी
हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी

क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो
हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी

लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया
यों बोझ किताबों की दबाती है जिन्दगी

है वोट अपनी लाठी क्यों भैंस है उनकी
क्या चाल सियासत की पढाती है जिन्दगी

गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे
महिला दिवस मना के बढाती है जिन्दगी

किरदार चौथे खम्भे का हाथी के दाँत सा
क्यों असलियत छुपा के दिखाती है जिन्दगी

देखो सुमन की खुदकुशी टूटा जो डाल से
रंगीनियाँ कागज की सजाती है जिन्दगी

२७ अप्रैल २००९

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