एहसास
मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहाँ।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहाँ।।
ख़्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया।
अनवरत जीने की ख़ातिर दे रहा हूँ इम्तहां।।
मुतमइन कैसे रहूँ जब घर पड़ोसी का जले।
है फरिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहाँ।।
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमाँ।।
ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में।
हो अगर एहसास ज़िंदा छोड़ जाएगा निशां।।
मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमा।।
मिलती है खुशबू सुमन को रोज़ अब खैरात में।
जो फ़क़ीरी में लुटाते अब यहाँ फिर कल वहाँ।।
16 मई 2006
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