फ़ितरत
डर के जीता है क्यों आज भी आदमी
जबकि दुनिया सजी आदमी के लिए।
एक है होश में कई मदहोश हैं
आदमी क्यों नहीं आदमी के लिए।।
आदमी आदमी को लगाते गले
आदमी काटते आदमी गले।
आदमी आदमी से परेशान क्यों
आदमियत तो है आदमी के लिए।।
आदमी ने विजय चाँद पर पा लिया
आदमी ने लहू आदमी का पिया।
आदमी देवता और शैतान भी
नहीं हैवानियत आदमी के लिए।।
आदमी न तो ढाँचा वो जज़्बात है
आदमी बन के जीना बड़ी बात है।
दूर नफ़रत करें मिल चमन के सुमन
सारी रूमानियत आदमी के लिए।।
9 अगस्त 2006
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