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अनुभूति में श्यामल सुमन की रचनाएँ-

मुक्तक में-
चेतना (चार मुक्तक)

दोहों में-
दोहों में व्यंग्य
नेता पुराण

हार जीत के बीच में

अंजुमन में-
अभिसार ज़िंदगी है
कभी जिन्दगी ने
जीने की ललक
बच्चे से बस्ता है भारी
बाँटी हो जिसने तीरगी
मुझको वर दे तू
मुस्कुरा के हाल कहता
मेरी यही इबादत है
मैं डूब सकूँ
रोकर मैंने हँसना सीखा
रोग समझकर
साथी सुख में बन जाते सब
हाल पूछा आपने

कविताओं में-
आत्मबोध
इंसानियत
एहसास
कसक
ज़िंदगी
द्वंद्व
दर्पण
फ़ितरत 
संवाद
सारांश
सिफ़र का सफ़र

 

इंसानियत

इंसानियत ही मज़हब सबको बताते हैं।
देते हैं दग़ा आकर इनायत जताते हैं।।

उसने जो पूछा हमसे क्या हाल चाल है।
लाखों हैं बोझ ग़म के पर मुसकुराते हैं।।

मजबूरियों से मेरी उनकी निकल पड़ी।
लेकर के कुछ न कुछ फिर रास्ता दिखाते हैं।।

खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं।।

नज़रें चुराए जाते जो दुश्वारियों के दिन।
बदले हुए हालात में रिश्ते बनाते हैं।।

दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।

फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में।
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं।।

9 अगस्त 2006

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