अनुभूति में
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रंग
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सिर्फ़ तुम हो
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तस्वीर
कल तुम्हारे बचपन की
तस्वीर देखते ही
कई बीते पल आँखों के सामने
आकर झूल से गए
तुम्हारा रात भर में कई बार जगना,
बार-बार बिस्तर गीला करना,
फिर धीरे-धीरे बढ़ना,
शाला की ओर कदम बढ़ाना,
तुम्हें हाथ पकड़कर लिखवाना,
इसी क्रम में, कई रातें जगना,
तुम्हें पथभ्रष्ट होने से रोकना,
और तुम्हारा रूठ जाना,
आज अचंभित होता मन,
समय कैसे पंख लगाकर उड़ गया,
मुझे ये सब सपना-सा
लगता, पर शायद माँ बनना, ये सब सहना,
अच्छा लगता हर स्त्री को, क्योंकि
औरत की ज़िंदगी का यथार्थ है
माँ बनना।
24 अप्रैल 2007
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