अनुभूति में
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सिर्फ़ तुम हो
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रिश्ते
कई बार सोच बैठती,
अब मेरा उनसे क्या नाता,
रिश्ते दिल दुखाने के लिए
ही बनते हैं,
पल भर के लिए मैं
निष्ठुर हो जाती,
पर न जाने कब
सारा आक्रोश बह
जाता, व गले लगा लेती
उन्हें भी सामने आते ही
जिन्होंने मेरी जड़ों को
हिलाया था। क्यों?
शायद खून ज़्यादा गर्म
होता है व सदैव जीत
जाता खोखली भावनाओं
के सामने।
काश, घर से बाहर
भी यही लागू हो जाए
तो विश्व में तूफ़ान
भावनाओं का हो व
शांति दिलों की।
24 अप्रैल 2007
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