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बूढ़ी आँखें
बेजान-सी एकटक निहारती,
वक्त के समस्त पलटे,
खुशियों के अंबार,
गमों के उथाह सागर
बूढ़ी आँखें।
बेटी को विदा करते
बेटे के आगमन पर
पुराने दोस्त की
तस्वीर को टकटकी
बाँधे देखती बूढ़ी आँखें।
घर में रखे पुराने
सामान को,
आँगन के पीपल,
दहलीज़ के दरवाज़े पर
हर वक्त दस्तक देती
बूढ़ी आँखें।
पर कभी, बिजली चमकने पर,
बबुआ के रोने की आवाज़ सुन,
नींद टूटने पर करवटें बदलते,
क्यों बरसती बूढ़ी आँखें।
24 जनवरी 2006
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