अनुभूति में
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सिर्फ़ तुम हो
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अमानवता
अमानवता का तांडव
करने वालों
चंद सिक्कों में बिकने
वालों,
तनिक सोचो
उन हादसों में स्वाह हुए
लोग तुम्हारी तरह ही
हाड़ माँस के बने थे,
उन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था
तुम तो उनकी शक्ल तक भी
नहीं जानते,
फिर क्यों मार दिया तुमने उन्हें
पता है इंसान की कोई
बिरादरी नहीं होती,
इंसान सब एक से होते हैं
वो पैदाइशी हिंदू-मुस्लिम नहीं
सिर्फ़ इंसान होते हैं।
24 अप्रैल 2007
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