अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शबनम शर्मा की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
अमानवता
आज़ादी
खुशबू
तस्वीर
प्रश्न
बाबूजी के बाद
मजबूरी
रंग
रिश्ते

कविताओ में-
इक माँ
इल्ज़ाम
बूढ़ी आँखें
बेटियाँ
मकान
माँ
मुसाफ़िर
रंग
सपना
सिर्फ़ तुम हो

 

बेटियाँ

शायद पल भर में ही
सयानी हो जाती हैं
बेटियाँ,
घर के अंदर से
दहलीज़ तक कब
आज जाती हैं बेटियाँ
कभी कमसिन, कभी
लक्ष्मी-सी दिखती हैं
बेटियाँ।
पर हर घर की
तकदीर, इक सुंदर
तस्वीर होती हैं
बेटियाँ।
हृदय में लिए उफान,
कई प्रश्न, अनजाने
घर चल देती हैं बेटियाँ,
घर की, ईंट-ईंट पर,
दरवाज़ों की चौखट पर
सदैव दस्तक देती हैं
बेटियाँ।
पर अफ़सोस क्यों सदैव
हम संग रहती नहीं
ये बेटियाँ

24 जनवरी 2006

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter