अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शबनम शर्मा की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
अमानवता
आज़ादी
खुशबू
तस्वीर
प्रश्न
बाबूजी के बाद
मजबूरी
रंग
रिश्ते

कविताओ में-
इक माँ
इल्ज़ाम
बूढ़ी आँखें
बेटियाँ
मकान
माँ
मुसाफ़िर
रंग
सपना
सिर्फ़ तुम हो

 

सिर्फ़ तुम ही हो

तुम्हारी याद,
कभी भीनी खुशबू संग,
तो कभी सीली हवा
लेकर आती, छूती मुझे,
अंतस्थल हिलाती,
मेरा उपहास उड़ाती,
ठहर-सी जाती,
देखने मेरा आँसुओं का सैलाब,
कभी सिसकियों भरी कश्ती,
फिर सवार होती मेरे
हृदय के मानस पटल पर,
अंकित करती अपने कुछ
चमकते शब्द।
मैं समझती ये तुम्हारी याद
है या मेरे निश्छल
प्यार की लहरों से निकले
वो माणिक जिनके सहारे
मैं जीवन नैया खे रही।
सवाल-जवाब मिलने से पहले ही

साँसों में विलीन हो जाता, जिसमें
सिर्फ़ तुम - सिर्फ़ तुम ही हो।

9 नवंबर 2006

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter