अनुभूति में
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सिर्फ़ तुम हो
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मजबूरी
कभी-कभी इक सवाल
तुम्हारी आत्मा से
अवश्य उठता होगा
कि किस मिट्टी की बनी हूँ मैं,
तुमने मुझे सताने में
कोई कसर बाकी न रखी
मेरे अस्तित्व, आत्मा को
पाँव तले रौंदा, नीम से
कड़वे शब्दों का इस्तेमाल किया
मैं मरी क्यो नहीं?
सुनो, मुझे आते हैं तुम्हारे
सब प्रश्नों के उत्तर,
पर मेरी चुप्पी में छिपी
है सिर्फ़ इक मजबूर माँ
जिसकी भावनाओं को
समझना इक मर्द
के बस की बात नहीं।
24 अप्रैल 2007
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