अनुभूति में
अभिज्ञात की रचनाएँ-
नए गीतों में-
कुशलता है
भटक गया तो
वह हथेली
क्षण का विछोह
क्षतिपूर्तियाँ
अंजुमन में -
आइना होता
तराशा उसने
दरमियाँ
रुक जाओ
वो रात
सँवारा होता
सिलसिला रखिए
पा नहीं सकते
कविताओं में -
अदृश्य दुभाषिया
आवारा हवाओं के खिलाफ़ चुपचाप
शब्द पहाड़ नहीं तोड़ते
तुमसे
हवाले गणितज्ञों के
होने सा होना
गीतों में -
अब नहीं हो
असमय आए
इक तेरी चाहत में
उमर में डूब जाओ
एकांतवास
तपन न होती
तुम चाहो
प्रीत भरी हो
मन अजंता
मीरा हो पाती
मुझको पुकार
रिमझिम जैसी
लाज ना रहे
संकलन में -
प्रेमगीत-आख़िरी हिलोर तक
गुच्छे भर अमलतास-धूप
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मीरा हो पाती
दुनिया का बाज़ार भला है
खरे परखी हैं व्यापारी
तेरी एक खुशी के बदले
मैं नीलाम अगर हो पाऊँ।
चाहे वह कोई महफ़िल हो
चाहे वह कोई आलम हो
वह चाहे हँसता वसंत हो
वह चाहे रोता सावन हो
गूँज रहा जो क्षण-क्षण मेरा
गीत, तभी सार्थक हो जाए
तुम सरनाम अगर हो पाओ
मैं बदनाम अगर हो पाऊँ।
हर चेहरे में, तेरा चेहरा
जाने क्यों मन ढूँढ़ रहा है
जैसे कोई अंधापन
स्पर्श से दर्शन ढूँढ रहा है
यह परिचय, अन्तर्मन तक है
यह पहचान और बढ़ जाए
तेरे सिवा, सारी दुनिया से
मैं अनजान अगर हो पाऊँ।
तन से तन का मधुर-मिलन
हो पाएगा, विश्वास नहीं है
भले नैन सौ संगम कर लें
मिटती किंचित प्यास नहीं है
प्रणय-मिलन की ये आतुरता
ले आए ऐसे पथ तक ही
काश कि तुम मीरा हो पाती
मैं घनश्याम अगर हो पाऊँ।
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