अनुभूति में
अभिज्ञात की रचनाएँ-
नए गीतों में-
कुशलता है
भटक गया तो
वह हथेली
क्षण का विछोह
क्षतिपूर्तियाँ
अंजुमन में -
आइना होता
तराशा उसने
दरमियाँ
रुक जाओ
वो रात
सँवारा होता
सिलसिला रखिए
पा नहीं सकते
कविताओं में -
अदृश्य दुभाषिया
आवारा हवाओं के खिलाफ़ चुपचाप
शब्द पहाड़ नहीं तोड़ते
तुमसे
हवाले गणितज्ञों के
होने सा होना
गीतों में -
अब नहीं हो
असमय आए
इक तेरी चाहत में
उमर में डूब जाओ
एकांतवास
तपन न होती
तुम चाहो
प्रीत भरी हो
मन अजंता
मीरा हो पाती
मुझको पुकार
रिमझिम जैसी
लाज ना रहे
संकलन में -
प्रेमगीत-आख़िरी हिलोर तक
गुच्छे भर अमलतास-धूप
|
|
एकांतवास
इस नगर चेतना का प्रतिफल
भाये तुमको नित कोलाहल
मुझको प्रिय मम् एकांतवास।
उनको विस्मृत कर गौरान्वित
जिनकी सुधियों का मैं रखैल
अति दुलार से पोस रहा मैं
इक पीड़ा की अमरबेल
सुन मरुथल की मार्मिक गुहार
मुझसे तू संबल ले उधार
मुझमें तरुणाई का विकास।
मैं चुके-चुके विश्वासों के
अभिनव अभिनय में छला हुआ
अभियोगों का बन शिलाखण्ड
जड़ता साधे हूं ढला हुआ
तुमको भाये, तो नृत्य मेरा
तुमको गाये, वह वह कृत्य मेरा
तुमसे मेरा हर शिलान्यास।
२७ अप्रैल २००९
|