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अनुभूति में अभिज्ञात की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कुशलता है
भटक गया तो
वह हथेली
क्षण का विछोह
क्षतिपूर्तियाँ

अंजुमन में -
आइना होता
तराशा उसने
दरमियाँ
रुक जाओ
वो रात
सँवारा होता
सिलसिला रखिए
पा नहीं सकते

कविताओं में -
अदृश्य दुभाषिया

आवारा हवाओं के खिलाफ़ चुपचाप
शब्द पहाड़ नहीं तोड़ते
तुमसे
हवाले गणितज्ञों के
होने सा होना

गीतों में -
अब नहीं हो
असमय आए
इक तेरी चाहत में
उमर में डूब जाओ
एकांतवास

तपन न होती
तुम चाहो
प्रीत भरी हो
मन अजंता
मीरा हो पाती
मुझको पुकार
रिमझिम जैसी
लाज ना रहे

संकलन में -
प्रेमगीत-
आख़िरी हिलोर तक
गुच्छे भर अमलतास-
धूप 

 

कुशलता है

क्षण-क्षण, जल-जल, मोम सदृश्य
पिघलता है
हाय, मिलन की न्यारी ये
विह्वलता है।

अंत्याक्षरी होने दो
आज व्यथाओं की
और गोष्ठियाँ मन की
लघु-कथाओं की
अकथ्य कथन भी कहने की
व्याकुलता है।

एक साथ विश्वास और
अंदेशे पाल रखे
कितने ही गोपन उपालम्भ
संदेशे पाल रखे
सुधि सहचर बनकर रही
कुशलता है।

२० जुलाई २००९




 

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