आईना होता
ख्व़ाब जैसा ही वाक़या होता
तू मेरे घर जो आ गया होता
जिन ख़तों को सँभाल कर रक्खा
काश उनको मैं भेजता होता
ख्व़ाब के ख्व़ाब देखने वाले
आँख से भी तो देखता होता
तुझको देखा तो मेरे दिल ने कहा
मैं न होता इक आईना होता
खुद को मैं ढूँढे से कहाँ मिलता
गर न तुझको मैं चाहता होता
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