अनुभूति में
अभिज्ञात की रचनाएँ-
नए गीतों में-
कुशलता है
भटक गया तो
वह हथेली
क्षण का विछोह
क्षतिपूर्तियाँ
अंजुमन में -
आइना होता
तराशा उसने
दरमियाँ
रुक जाओ
वो रात
सँवारा होता
सिलसिला रखिए
पा नहीं सकते
कविताओं में -
अदृश्य दुभाषिया
आवारा हवाओं के खिलाफ़ चुपचाप
शब्द पहाड़ नहीं तोड़ते
तुमसे
हवाले गणितज्ञों के
होने सा होना
गीतों में -
अब नहीं हो
असमय आए
इक तेरी चाहत में
उमर में डूब जाओ
एकांतवास
तपन न होती
तुम चाहो
प्रीत भरी हो
मन अजंता
मीरा हो पाती
मुझको पुकार
रिमझिम जैसी
लाज ना रहे
संकलन में -
प्रेमगीत-आख़िरी हिलोर तक
गुच्छे भर अमलतास-धूप
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अब नहीं हो
हार, किस काँधे पे धर दूँ
जीत किस को भेंट कर दूँ
कोई तो अपना नहीं था
एक तुम थे, अब नही हो!
किस तरह राहत बनेगी
टूट जाने की हताशा
थक गई साँसों को देगा
कौन जीवन की दिलासा
बिस्तरों पर सिलवटें अब
नींद क्या, बस करवटें अब
रात ने ताने दिए तो
आँख में बस बात ये कि
कोई तो सपना नहीं था
एक तुम थे, अब नहीं हो!
किस हथेली की रेखाओं
का वरण मैंने किया है
किसका, क्षणभर प्यार पाने
को जनम मैंने लिया है
इस प्रश्न का हल था मिला कल
हाँ वही रीता हुआ पल
जिसने मेरा गीत साधा
जो कहो, रत्ना या राधा
कोई तो इतना नहीं था
एक तुम थे, अब नहीं हो!
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