अनुभूति में
दिगंबर नासवा की
रचनाएँ -
दोहों में-
सकल
जगत अपना हुआ
छंदमुक्त में-
उफ तुम भी न
डरपोक
तस्वीर
प्रगति
प्रश्न
माँग लेने के लिये
बीसवीं सदी की वसीयत
रिश्ता
सपने पालने की कोई उम्र नहीं होती
हैंग ओवर
गीतों में-
आशा का घोड़ा
क्या मिला सचमुच शिखर
घास उगी
चिलचिलाती धूप है
पलाश की खट्टी
कली
अंजुमन में-
आँखें चार नहीं कर पाता
प्यासी दो साँसें
धूप पीली
सफ़र में
हसीन हादसे का शिकार
संकलन में-
मेरा भारत-
हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा-
आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली-
इस बार दिवाली पर
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सकल जगत अपना हुआ
सकल जगत अपना हुआ, जीत न कोई हार
कान्हा जी से जुड़ गए, अंतर्मन के तार
कान्हा जी ऐसा करो, भीगे मन इस बार
शरण तुम्हारी पा सकूँ, भव-सागर हो पार
प्रेम, समर्पण, शक्ति, धन, राधा के अधिकार
दौड़े दौड़े आ गए, कान्हा जिनके द्वार
पृथ्वी, जल, वायु, गगन, अग्नि तत्व शरीर
सुख-दुःख, माया, मोह, जग, हर बंधन में पीर
बने द्वारिकाधीश जो, रहे जगत को पाल
सखा-सखी मन जा बसे, खुद नटखट गोपाल
सजा हुआ है आज फिर, कान्हा का दरबार
अरजी पर शायद मेरी, चर्चा हो इस बार
सहज सरल सी बात है कहे सुदर्शन चक्र
संयम ही अनुकूल है, समय दृष्टि जब वक्र
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