अनुभूति में
दिगंबर नासवा की
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हसीन हादसे का शिकार
संकलन में-
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हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा-
आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली-
इस बार दिवाली पर
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सपने पालने की कोई
उम्र नहीं होती
वो अक्सर उतावली हो के बिखर जाना चाहती थी
ऊँचाई से गिरते झरने की बूँद सरीखी
और जब बाँध लिया आवारा मोहब्बत ने उसे
उतर गई अँधेरे की सीढ़ियाँ आँखें बंद किए
ये सच है वो होता है बस एक पल
बिखर जाने के बाद समेटने का मन नहीं होता जिसे
उम्र की सलेट पर जब सरकती है ज़िंदगी
कायनात खुद-ब-खुद बन जाती है चित्रकार
हालाँकि ऐसा दौर कुछ समय के लिए आता है सबके जीवन में
(ओर वो भी तो इसी दौर से गुज़र रही थी
मासूम सा सपना पाले)
फिर आया तनहाई का लम्बा सफ़र
उजली बाहों के कई शहसवार वहाँ से गुज़रे
पर नहीं खुला सन्नाटों का पर्दा
उम्र काफी नहीं होती पहली मुहब्बत भुलाने को
जुम्बिश खत्म हो जाती है आँखों की
पर यादें ...
वो तो ताजा रहती हैं जंगली गुलाब की खुशबू लिए
ये जीत है आवारा मुहब्बत की या हार उस सपने की
जिसको पालने की कोई उम्र नहीं होती
१ फरवरी २०१९
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