अनुभूति में
दिगंबर नासवा की
रचनाएँ -
नयी रचनाओं में-
उफ तुम भी न
तस्वीर
माँग लेने के लिये
सपने पालने की कोई उम्र नहीं होती
हैंग ओवर
छंदमुक्त में-
डरपोक
प्रगति
प्रश्न
बीसवीं सदी की वसीयत
रिश्ता
गीतों में-
आशा का घोड़ा
क्या मिला सचमुच शिखर
घास उगी
चिलचिलाती धूप है
पलाश की खट्टी
कली
अंजुमन में-
आँखें चार नहीं कर पाता
प्यासी दो साँसें
धूप पीली
सफ़र में
हसीन हादसे का शिकार
संकलन में-
मेरा भारत-
हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा-
आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली-
इस बार दिवाली पर
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उफ़... तुम भी न
पता है
तुमसे रिश्ता ख़त्म होने के बाद
कितना हल्का महसूस कर रहा हूँ
सलीके से रहना
ज़ोर से बात न करना
चेहरे पर जबरन मुस्कान रखना
"सॉरी"
"एसक्यूस मी"
भारी भरकम संबोधन से बात करना
"शेव बनाओ"
छुट्टी है तो क्या...
"नहाओ"
कितना कचरा फैलाते हो
बिना प्रेस कपड़े पहन लेते हो
धीमे बोलने के बावजूद
नश्तर सी चुभती तुम्हारी बातें
बनावटी जीवन की मजबूरी
अच्छे बने रहने का आवरण
उफ्फ... कितना बौना सा लगने लगा था
अच्छा ही हुआ डोर टूट गई
कितना मुक्त हूँ अब
घर में लगी हर तस्वीर बदल दी है मैंने
सोफे की पोज़ीशन भी बदल डाली
फिल्मी गानों के शोर में
अब देर तक थिरकता हूँ
ऊबड़-खाबड़ दाढ़ी में
जीन पहने रहता हूँ
तुम्हारे परफ्यूम की तमाम शीशियाँ
गली में बाँट तो दीं
पर क्या करूँ
वो खुश्बू मेरे ज़हन से नहीं जा रही
और हाँ
वो धानी चुनरी
जिसे तुम दिल से लगा कर रखती थीं
उसी दिन से
घर के दरवाजे पर टाँग रक्खी है
पर कोई कम्बख़्त
उसको भी नहीं ले जा रहा ...
१ फरवरी २०१९
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