अनुभूति में
दिगंबर नासवा की
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आशा का घोड़ा
क्या मिला सचमुच शिखर
घास उगी
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पलाश की खट्टी
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अंजुमन में-
आँखें चार नहीं कर पाता
प्यासी दो साँसें
धूप पीली
सफ़र में
हसीन हादसे का शिकार
संकलन में-
मेरा भारत-
हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा-
आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली-
इस बार दिवाली पर
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तस्वीर
सिगरेट के धुएँ से बनती तस्वीर
शक्ल मिलते ही
फूँक मार के तहस नहस
हालांकि आ चुकी होती हो तब तब
मेरे ज़ेहन में तुम
दागे हुए प्रश्नों का अंजाना डर
ताकत का गुमान की मैं भी मिटा सकता हूँ
या "सेडस्टिक प्लेज़र"
तस्वीर नहीं बनती तो भी बनाता हूँ
(मिटानी जो है)
सच क्या है कुछ पता नहीं
पर मुझे बादल भी अच्छे नहीं लगते
शक्लें बनाते फिरते हैं आसमान में
कभी कभी तो जम ही जाते हैं एक जगह
एक ही तस्वीर बनाए
शरीर पे लगे गहरे घाव की तरह
फूँक मारते मारते अक्सर बेहाल हो जाता हूँ
साँस जब अटकने लगती है
कसम लेता हूँ बादलों को न देखने की
पर कम्बख्त ये सिगरेट नहीं छूटेगी मुझसे...
१ फरवरी २०१९
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