अनुभूति में
दिगंबर नासवा की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
डरपोक
प्रगति
प्रश्न
बीसवीं सदी की वसीयत
रिश्ता
गीतों में-
आशा का घोड़ा
क्या मिला सचमुच शिखर
घास उगी
चिलचिलाती धूप है
पलाश की खट्टी
कली
अंजुमन में-
आँखें चार नहीं कर पाता
प्यासी दो साँसें
धूप पीली
सफ़र में
हसीन हादसे का शिकार
संकलन में-
मेरा भारत-
हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा-
आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली-
इस बार दिवाली पर
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प्रश्न
इतिहास के क्रूर पन्नों पे
समय तो दर्ज़ करेगा
हर गुज़रता लम्हा
मुँह में उगे मुहाँसों से लेकर
दिल की गहराइयों में छिपी क्रांति को
खोल के रख देगा निर्विकार आईने की तरह
अनगिनत सवाल रोकेंगे रास्ता
तेरी मेरी
हम सबकी भूमिका पे
जो तटस्थ रहेंगे
या लड़ेंगे
समय तो लिखेगा
उन सब का इतिहास
क्या सामना करोगे इन सवालों का
सृष्टि के रहने तक
युग के बदलने तक
भविष्य में उठने वाले इन प्रश्नों का जवाब
वर्तमान में ही देना होगा
क्या अब भी सोते रहोगे?
१४ अप्रैल २०१४
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