संसद में बिल
संसद में बिल तो
पारित हो जाते हैं,
फिर जाने कानून कहाँ खो जाते हैं।
बस्ती जंगल हो जाती है शाम ढले,
राहनुमा तो खा पीकर सो जाते हैं।
किसके मन में क्या है कुछ मालूम नहीं,
लोग नमस्ते करके चुप हो जाते हैं।
मैं लोगों की बातें क्या सुन लेता हूँ,
सारे झगड़े मेरे सर हो जाते हैं।
अब मंज़िल की राह दिखाने वाले ही,
अक्सर पथ में काटें भी बो जाते हैं।
पूजा-पाठ हमारे वश की बात नहीं,
जाने को हम मंदिर तक तो जाते हैं
६ जुलाई २००९
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