अनुभूति में
अशोक रावत की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
अँधेरे इस क़दर हावी हैं
ज़ुबां पर फूल होते हैं
भले ही उम्र भर
ये तो है कि
शिकायत ये कि
अंजुमन में—
इसलिए कि
डर मुझे भी लगा
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बड़े भाई के घर से
मुझको पत्थर अगर
विचारों पर सियासी रंग
संसद में बिल
हमारी चेतना पर
|
|
बड़े भाई के घर से
बड़े भाई के घर से आ रहा
हूँ,
गया ही क्यों था अब पछता रहा हूँ।
कोई दुश्मन नहीं है भाई है वो,
मैं अपने आपको समझा रहा हूँ।
ये बच्चे हैं कि सुनते ही नहीं हैं,
मैं कितनी देर से चिल्ला रहा हूँ।
मुझे भी तोड़ कर ले जाए कोई,
मैं अपनी शाख पर उकता रहा हूँ।
ज़माने को जहाँ जाना है जाए,
मैं अपने रास्ते पर जा रहा हूँ।
गिला फिर भी नहीं है दोस्तों से,
भले ही रोज़ धोखे खा रहा हूँ।
१ अप्रैल २००६
|