अनुभूति में
अशोक रावत की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
आसमाँ में
उजाले तीरगी में
जी रहे हैं लोग
भले ही रोशनी कम हो
अंजुमन में—
अँधेरे इस क़दर हावी हैं
इसलिए कि
किसी का डर नहीं रहा
डर मुझे भी लगा
जिन्हें अच्छा नहीं लगता
ज़ुबां पर फूल होते है
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बढ़े चलिये
बड़े भाई के घर से
भले ही उम्र भर
मुझको पत्थर अगर
ये तो है कि
विचारों पर सियासी रंग
शिकायत ये कि
संसद में बिल
सभी तय कर रहे हैं
हमारे
हमसफ़र भी
हमारी चेतना पर
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डर मुझे भी लगा
डर मुझे भी लगा
फासला देखकर
पर मैं बढ़ता गया रास्ता देखकर
खुद ब खुद मेरे नज़दीक आती गई
मेरी मंजिल मेरा हौसला देखकर
उसकी हिम्मत पे हैरान होता हूँ मैं
एक पिंजरे को उड़ता हुआ देखकर
किसको फुर्सत है मेरी कहानी सुने
लौट जाते हैं सब आगरा देखकर
अब तो चिंता सी होने लगी है मुझे
अपनी बस्ती की आबोहवा देखकर
खुश नहीं हैं अँधेरे मेरे सोच में
एक दीपक को जलता हुआ देखकर
६ जुलाई २००९
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