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हालात के
मारे हुए हैं |
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हालात के
मारे हुए हैं लोग
दोष इतना भर कि तुमको
चुन लिया हमनें
जाल मकड़ी सा स्वयं ही
बुन लिया हमने
क्या कहें हम इसे घटना
या महज संजोग
जिंदगी का यह जुलाहा
दर्द बुनता है
वेदना तेरी कथा अब
कौन सुनता है
आस थी जिनसे हमें
साधे हुए हैं योग
दूर तक दिखता नहीं कुछ
है न कोई ठौर
दृश्य में जो दिख रहा पर
है कथानक और
एक दिन तो तोड़ना होगा
वहम का रोग
- मनोज जैन 'मधुर' |
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इस माह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त
में-
छोटी कविताओं
में-
पुनर्पाठ में-
पिछले माह
चित्र कविता में
गीतों में-
आभा सक्सेना दूनवी,
कल्पना मनोरमा,
कल्पना रामानी,
पंकज परिमल,
डॉ.
प्रदीप शुक्ल,
मधु प्रधान,
मनोज
जैन मधुर,
रंजना गुप्ता,
शशिकांत गीते,
शशि
पाधा,
शशि
पुरवार,
सीमा अग्रवाल।
दोहों में -
अनिल
कुमार वर्मा,
राम
शिरोमणि पाठक,
संध्या सिंह,
त्रिलोचना कौर।
अंजुमन में-
रमा
प्रवीर वर्मा।
छंदमुक्त
में- प्रेरणा गुप्ता।
हाइकु में-
आभा
खरे।
कुंडलिया
में- सुरेन्द्रपाल वैद्य।
माहिया में-
परमजीत कौर रीत।
मुक्तक में-
ज्योतिर्मयी पंत
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