अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

फूल ने सीखा
 
 

फूलों जैसी सफल जिंदगी
प्यार मुहब्बत और बंदगी
रंग लुभावने विविध सुगंध
औरों के हित भरी जिंदगी


रंग रूप आकार निराले
देख तुम्हें हों सब मतवाले
बागों से आ सजते घर भी
फूल सभी के हृदय चुरा लें


रंग बिरंगे पुष्प अनेक
सज जाता गुलदस्ता एक
खुशियाँ भर दें मिलके संग
परिवारों में सब हों नेक।


सजा रही घर को गृहणी फूलों से
मुस्कुरा खुद निबट रही शूलों से
तन -मन सर्वस्व न्योछावर करना
सीख लिया ये मंत्र जिसने फूलों से


हर लें नकारात्मक ऊर्जा जो सदा
रंग- रस- सुगंध- मकरंद मधुर सदा
खुशी -गम हो पूजा- अर्चना अवसर
निभाने साथ आते हैं सुमन सदा

- ज्योतिर्मयी पंत
१ जून २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter