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फूल तुम्हें मैं कहाँ सजाऊँ
 
 
तुम कह दो तो इन फूलों को
दे दूँ मैं मुस्कान ?

वो मुस्कानें अनायास जो
तुम्हें याद करते ही
अधरों पर टँकती हैं
वो मुस्काने जो घुँघरू सी
अंतर के आँगन में
छम छम छम बजती हैं

तुम कह दो तो इन रंगों में
भर दूँ थोड़ी जान

वो मुस्काने जो अक्सर ही
हम दोनो के बीच
मौन सम्वादों सी हैं
वो मुस्काने जो बिन माँगे
खट्टे-मीठे, सच्चे -झूठे
वादों सी हैं

तुम कह दो तो ख़ुशबू के तन
पर रख दूँ परिधान

वो मुस्काने जो हर उलझन
को सुलझा पाने के
सौ सौ ढब रखती हैं
वो मुस्काने जो मुस्कानों
के क्या जाने कितने ही
मतलब रखती हैं

तुम कह दो तो शाख़ शाख़ पर
कर दूँ मैं एहसान

- सीमा अग्रवाल
१ जून २०१८

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