अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

निशांत

जन्म – ५ जुलाई १९७९ मुज़फ्फरपुर, बिहार में।
शिक्षा – काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कला इतिहास में स्नातक और राष्ट्रिय संग्रहालय संस्थान से डॉक्टरेट की उपाधि (मिथिला की मिट्टी की मूर्ति कला परम्परा, कुम्हार और इनसे जुड़े रीति रिवाज़, २००८)

कार्यक्षेत्र -
कला, संस्कृति और साहित्य में बचपन से रुचि। आधुनिक तथा भारतीय लोक कला पर शोध, लेखन और प्रदर्शनी के क्षेत्र में सक्रिय। २००९ में अपने पीएचडी थीसिस के एक भाग पर यूनेस्कोके ईंटेंजिबल कल्चरल हेरिटेज नॉमिनेशन के लिए ‘फ़ेस्टिवल ऑफ सलहेश’ नाम से डाक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण। इसके साथ ही कला और कलाकार से जुड़े विषयों पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण। पाक कला में अभिरुचि तथा भोजन और इसके क्षेत्रीय विन्यास (एंथ्रोपोलॉजी ऑफ फ़ूड) पर शोध कार्य जारी।

प्रकाशित कृतियाँ–
कला और संस्कृति पर कई लेख एवं फिल्में प्रकाशित प्रदर्शित।

संप्रति-
कला इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' में असिस्टेंट प्रोफेसर।

ईमेल- nispss@gmail.com  

`

बीते और साथ रहे प्रेम के लिए
(पाँच छोटी कविताएँ)


प्रेम के लिए
जो पास होने और छूटने के बन्धनों से
मुक्त है।
जिसका स्वरूप हाड़ माँस से गढ़े
शरीर में बस दिखता है, क्षणिक।
पर, मन में नहीं उतरता।
मेरे लिए तो प्रेम निराकार ही रहा।
अगर देह है भी तो बस
माध्यम मात्र।


जब भी ताऊ की छत का नीला आकाश
मेरे ऊपर छा जाता है
मैं उस दूधिया धुएँ को सुकून में याद करता हूँ।
लोहबान की खुशबू में वो रात का संगीत मुझे
कल ही बीता हुआ लगता है।
काश! कोई कुछ ऐसा कर दे मेरे अंदर
वो मदहोशी भर दे।
मुनिरका तुम तो मेरे लिए जहाँआरा थी।


जब भी प्यार की तलाश में
मैं तुम्हारी तरफ़ हो लेता।
हाँ, अकेले।
तो दिल्ली की गर्मी
मुनिरका वाले मेरे कमरे की तपिश से न
जाने क्यों ज़्यादा लगती।
आह, वो मेरा तंग, अँधेरा कमरा।
वो बेज़ुबान, बेजान मुझे बेइंतहा चाहने वाला।
जब एक ऊँचा मकान उसकी छाती पर उग आया।
मैं दूर बैठा अपने निर्जीव प्रेम के ढहने के दर्द
को भुलाने
की कोशिश कर रहा था।


तुम्हारा चले जाना
और कभी तितली की तरह लौटना
प्रेम के न जाने की गवाही है।


सहजन के बारीक़ पत्तों से छन कर आती
नर्म धूप के नीचे
बैठे चुनार पत्थर के फ़र्श पर।
हाथ में चाय से लबालब मिट्टी का कुल्हड़।
मुझे तुम जनवरी सी याद आती हो।

१ जुलाई २०१८

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter