बीते और साथ रहे प्रेम के लिए
(पाँच छोटी कविताएँ)
१
प्रेम के लिए
जो पास होने और छूटने के बन्धनों से
मुक्त है।
जिसका स्वरूप हाड़ माँस से गढ़े
शरीर में बस दिखता है, क्षणिक।
पर, मन में नहीं उतरता।
मेरे लिए तो प्रेम निराकार ही रहा।
अगर देह है भी तो बस
माध्यम मात्र।
२
जब भी ताऊ की छत का नीला आकाश
मेरे ऊपर छा जाता है
मैं उस दूधिया धुएँ को सुकून में याद करता हूँ।
लोहबान की खुशबू में वो रात का संगीत मुझे
कल ही बीता हुआ लगता है।
काश! कोई कुछ ऐसा कर दे मेरे अंदर
वो मदहोशी भर दे।
मुनिरका तुम तो मेरे लिए जहाँआरा थी।
३
जब भी प्यार की तलाश में
मैं तुम्हारी तरफ़ हो लेता।
हाँ, अकेले।
तो दिल्ली की गर्मी
मुनिरका वाले मेरे कमरे की तपिश से न
जाने क्यों ज़्यादा लगती।
आह, वो मेरा तंग, अँधेरा कमरा।
वो बेज़ुबान, बेजान मुझे बेइंतहा चाहने वाला।
जब एक ऊँचा मकान उसकी छाती पर उग आया।
मैं दूर बैठा अपने निर्जीव प्रेम के ढहने के दर्द
को भुलाने
की कोशिश कर रहा था।
४
तुम्हारा चले जाना
और कभी तितली की तरह लौटना
प्रेम के न जाने की गवाही है।
५
सहजन के बारीक़ पत्तों से छन कर आती
नर्म धूप के नीचे
बैठे चुनार पत्थर के फ़र्श पर।
हाथ में चाय से लबालब मिट्टी का कुल्हड़।
मुझे तुम जनवरी सी याद आती हो।
१ जुलाई २०१८
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