| वर्षा हाइकु आषाढ़ माहउगी मन-मोर में
 नृत्य की चाह
 पहला मेहभीतर तक भीगी
 गोरी की देह
 पहला मेहया प्रिय के मन से
 छलका स्नेह
 हुई अधीरमेघ ने छुआ जब
 नदी का नीर
 देखे थे ख़्वाबभर दिए मेघों ने
 सूखे तालाब
 भरे तालपास खड़े पेड़ भी
 हैं खुशहाल
 लिक्खे सर्वत्रआसुओं की बूँदों से
 पेड़ों ने पत्र
 जलतरंगजल बना, तर भी -
 बना मृदंग
 ये नन्ही नावकाग़ज़ में बैठे हैं
 बच्चों के भाव
 पूरा आकाशदे गया कृषकों को
 जीने की आश
 छतरी खुलीछूट रही हाथ से
 ये चुलबुली
 भीगी सड़कफिसल मत जाना
 ओ बेधड़क
 चौपालों परगूँज उठे हैं ऊँचे
 आल्हाके स्वर
 इंद्रधनुषबिखरा कर रंग
 कितना खुश
 पानी की प्यासधरा हो या गगन
 सबके पास
 १ सितंबर २००६ |