| दो दिलों के दरमियाँ 
 दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंकचहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक
 हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथमुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक
 जो धरा से कर रही है कम गगन का फासलाउन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक
 फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछालतैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक
 यह तेरी काँवर नहीं कर्तव्य का अहसास हैअपने कंधे से श्रवण! संबंध का काँवर न फेंक
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