| कफन बाँध कर 
 कफन बाँध कर अपने सर सेनिकले हैं फिर आँसू घर से
 राहों में इस्पाती पहियेगुज़र गए जब तब ऊपर से
 अपने साथ चला है जीवनशव को बाँधे हुए कमर से
 लौटी हैं कुछ बंद फ़ाइलें हम कब लौटे हैं दफ्तर से
 नीला बदन हुआ सपनों काकिसके विष के तेज़ असर से
 हमने अपने शीशे तोड़ेअपने हाथों के पत्थर से
 उगता सूरज सोच रहा हैसुबह उठेगी कब बिस्तर से
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