| ओ बासंती पवन 
 बहुत दिनों के बादखिड़कियाँ खोली हैं
 ओ बासंती पवन, हमारे घर आना!
 जड़े हुए थे ताले सारे कमरों मेंधूल भरे थे आले सारे कमरों में
 उलझन और तनावों के रेशों वाले
 पुरे हुए थे जाले सारे कमरों में
 बहुत दिनों के बादसाँकलें डोली हैं
 ओ बासंती पवन, हमारे घर आना!
 एक थकन-सी थी नव भाव-तरंगों मेंमौन उदासी थी वाचाल उमंगों में
 लेकिन आज समर्पण की भाषा वाले
 मोहक-मोहक, प्यारे-प्यारे रंगों में
 बहुत दिनों के बादखुशबुएँ घोली हैं
 ओ बासंती पवन, हमारे घर आना!
 पतझर ही पतझर था, मन के मधुवन मेंगहरा सन्नाटा-सा था अंतर्मन में
 लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुंडेरी पर
 चिंतन की छत पर, भावों के आँगन में
 बहुत दिनों के बादचिरइयाँ बोली हैं
 ओ बासंती पवन, हमारे घर आना!
 
 १ मार्च २००६
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