| धुआँ जब सुलगते दिल में आहें बन के छाता है धुआँहाथ में आकर भी क्या हाथों में आता है धुआँ
 आग की लपटों में जब खुल कर नहाता है धुआँ तैरकर कुछ दूर फिर क्यों डूब जाता है धुआँ
 सबसे पहले तन को अपने ही जलाता है धुआँ तब कहीं जाकर वे अपना सर उठाता है धुआँ
 यह मेरे पलकों का जादू है कि वो काजल बनावर्ना कब आँखों को अपना घर बनाता है धुआँ
 इस धुएँ के सिर्फ़ काले रंग पै मत जाइएयह भी देखें रोशनी को साथ लाता है धुआँ
 यह किसी आँधी की साज़िश है कि जिससे आज भीएक पूरा जिस्म होकर थरथराता है धुआँ
 प्यार भी एक आग है यह आग बुझते ही 'कुँअर'एक रिश्ते की तरह ही टूट जाता है धुआँ
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