अनुभूति में रामशंकर
वर्मा की रचनाएँ-
कुंडलिया में-
माता-पिता
नए गीतों में-
अरी व्यस्तता
फागुन को भंग
बाहर आओ
बूँदों के मनके
साहब तो साहब होता है
गीतों में-
एक कविता उसके नाम
तुम बिन
यह अमृतजल है
सखि रंग प्रीत के डाल
साथी कभी उदास न होना
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माता-पिता
पाई पाई रख रहे, माता पिता सहेज
मुँह बाये होगा खड़ा, कल को दैत्य दहेज
कल को दैत्य दहेज, चैन सुख जिसने लीले
लुटकर होंगे हाथ, लाडली के अब पीले
कह ‘मिस्टर कविराय‘, चलन की रामदुहाई
क्या गंगू, क्या भोज, जोड़ते पाई पाई
पानी में कल्मष घुला, हवा प्रदूषण युक्त
अन्न, फूल फल भी रहे, कहाँ मिलावट मुक्त
कहाँ मिलावट मुक्त, संक्रमित जीवन शैली
भाषा, बोल, विचार, चित्त की शुचिता मैली
कह ‘मिस्टर कविराय‘, फँसे हम नादानी में
खुद ही बोया बीज, मिलावट का पानी में
कलियाँ, खुशबू, फूल तो, पौधों का शृंगार
इन्हें विलग कर वृंत से, करो न अत्याचार
करो न अत्याचार, अरे कुछ तो सकुचाते
तोड़ तोड़ कर फूल, सुबह थैला भर लाते
कह‘मिस्टर कविराय‘,चमन की सूनी डलियाँ
कातर करें पुकार, अरे मत तोड़ो कलियाँ
साधो ऐसा राखिये, अपना चाल चरित्र
खुद महकें, महके जगत, ज्यों गंधी का इत्र
ज्यों गंधी का इत्र, स्वार्थ का जाला तोड़ें
निज कुल, वैभव, देह, स्वार्थ को पीछे छोड़ें
कह‘मिस्टर कविराय', बनो मत मिट्टी माधो
यह जीवन अनमोल, करें कुछ परिहत साधो
यही सनातन धर्म है, सही सनातन रीति
प्रकृत भाव से हम करें, प्राणिमात्र से प्रीति
प्राणिमात्र से प्रीति, हमें जीना सिखलाती
आदिकाल से जीव, हमारे संगी साथी
कह‘मिस्टर कविराय', बने बेशक अधुनातन
मन में हो समभाव, धर्म है सही सनातन
३ नवंबर २०१४ |