अनुभूति में रामशंकर
वर्मा की रचनाएँ-
नए गीतों में-
अरी व्यस्तता
फागुन को भंग
बाहर आओ
बूँदों के मनके
साहब तो साहब होता है
गीतों में-
एक कविता उसके नाम
तुम बिन
यह अमृतजल है
सखि रंग प्रीत के डाल
साथी कभी उदास न होना
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साहब तो साहब होता
है
सरसों करतल
पर बोता है
साहब तो साहब होता है
साहब ने पोथी पढ़ लिखकर
विद्या बुधि के झंडे गाड़े
एक कमाऊ कुर्सी खातिर
जोग जुगत के पढ़े पहाड़े
ऊपर सूटकेस पहुँचाकर
साहब विजयी हुए अखाड़े
अब बहती गंगा में निशदिन
साहब का लगता गोता है
दफ्तर में साहब के मुँह में
रहता सदा जेठ का मौसम
पर आमद ठेकेदारों की
साहब से बिछवाती जाजम
बंद किवाड़ों के अंदर से
खुसर-पुसर की बजती सरगम
साहब ने सेक्शन सेक्शन में
पाल रखा मिट्ठू तोता है
आना-जाना काम समय से
ड्यूटी के पाबंद फरीदे
माथापच्ची फ़ाइल नोटिंग
जी ओ पढ़ पढ़ फूटे दीदे
मिटटी के माधो ने प्रभु की
नहीं शान में गढ़े कशीदे
बैठे मार कुल्हाड़ी पैरों
अब पछताए क्या होता है
२१ अप्रैल २०१४
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