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अनुभूति में रामशंकर वर्मा की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अरी व्यस्तता
फागुन को भंग
बाहर आओ
बूँदों के मनके
साहब तो साहब होता है

गीतों में-
एक कविता उसके नाम
तुम बिन
यह अमृतजल है
सखि रंग प्रीत के डाल
साथी कभी उदास न होना

 

बाहर आओ

दड़बे में क्यों गुमसुम बैठे
बाहर आओ।
गोल गोल होठों से कोई
पंचम स्वर में गीत सुनाओ।

ठेस लगी तो माफ़ कीजिये
रंगमहल को दड़बा कहना
यदि तौहीनी।
इसके ढाँचे बुनियादों में
दफ़न आपके स्वर्णिम सपने
इस पर भी यह तुर्रा देखो
मैं अदना सा
करूँ शान में नुक्ताचीनी।
कुछ अपनी जगबीती कोई
बात सिलसिलेवार सुनाओ।

माना दड़बे में सोफा
मसनद कालीनें
चकित देख धोती कुर्ते का
चेहरा फक सा।
सास बहू के दाँव पेंच से
दिल बहलाता
एक अदद कोने में रक्खा
बुद्धू बक्सा।
इसकी फुसलौनी चालों को
धता बताओ।

बाहर नीलगगन में धूसर
बदल शावक
पैंया पैंया उठते गिरते
रार कर रहे।
बड़े प्रेम से पिछवारे के
लगे पेड़ से
तोड़ तोड़ सुग्गे
बिजली के तारों पर
ज्योनार कर रहे।
जोड़े में कनबतियाँ करती
पेंडुकी पर भी कान लगाओ। 
 

२१ अप्रैल २०१४

 

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