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अनुभूति में रामशंकर वर्मा की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अरी व्यस्तता
फागुन को भंग
बाहर आओ
बूँदों के मनके
साहब तो साहब होता है

गीतों में-
एक कविता उसके नाम
तुम बिन
यह अमृतजल है
सखि रंग प्रीत के डाल
साथी कभी उदास न होना

 

बूँदों के मनके

अम्बर की छलनी से छन के
बिखरे धरा पर
मोती सी बूँदों के मनके।

सागर के तट से
मेघों के मटके
लाई है पुरवा पनिहारी।
बरखा नचनियाँ नाचे
छमा छम
आँगन विजन वन
कुटिया औ महला अटारी।
नदियों तलैयों
खेंतों में फूटे
स्वर्णिम से धारे ये धन के।

मौसम लुहारे ने
बरखा के आरे से
संसृति के जकड़े
ग्रीषम की बेड़ी है काटी।
मेंहदी हिंडोलों ने
कजरी के बोलों ने
कागज की नावों ने
रिमझिम फुहारों की
छतरी तले आ
खुशियों की सिन्नी हैं बाँटी।
चितवन की आशा में
छैल चिकनियाँ तरुवर
खड़े बन ठन के।

२१ अप्रैल २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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